उत्तराखंड: एशिया के सबसे ऊंचे पेड़ की समाधि में पहुंच रहे हैं कई लोग. जानिए 208 साल पुराने महावृक्ष के बारे में कुछ खास बातें
आज विश्व पर्यावरण दिवस है और इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे वृक्ष के बारे में जिसकी समाधि बनाई गई है. उत्तराखंड के जौनसार बावर के पुरोला-त्यूनी मोटर मार्ग पर बनाई गई लगभग 208 वर्ष पुराने महावृक्ष की समाधि लोगों के आकर्षक का केंद्र बनी हुई है. पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने वर्ष 1997 में इस पेड़ को महावृक्ष घोषित किया था. वर्ष 2007 में आए तूफान की वजह से 208 वर्ष पुराना यह महावृक्ष धराशायी हो गया था. आपको बता दें कि लगभग 60.65 मीटर ऊंचे इस महावृक्ष की समाधि पर रोजाना सैकड़ों लोग पहुंच रहे हैं.
जौनसार-बावर के पास बंगाण क्षेत्र के टौंस नदी वन प्रभाग के देवता रेंज-ठडियार की सीमा हनोल से लगी हुई है. हनोल से लगभग पांच किलोमीटर दूर देवता रेंज के खूनीगाड़ के पास भासला बीट में एशिया महाद्वीप के सबसे ऊंचे चीड़ के महावृक्ष की समाधि बनाई गई है. वन विभाग की ओर से इस बहुमूल्य धरोहर के संरक्षण के लिए संग्रहालय बनाया गया है. यहां पर चीड़ के महावृक्ष के अवशेष को रखा गया है. हर साल एक से सात जुलाई तक वन विभाग की ओर से प्रदेशभर में आयोजित वन महोत्सव के अंतर्गत इस क्षेत्र में पौधरोपण किया जाता है. वन विभाग की ओर से महावृक्ष की समाधि के पास लगाए गए बोर्ड में लिखा है कि वृक्ष का दो से पांच जनवरी 2007 तक उपचार किया गया था.
जड़ से ऊपर लगभग साढ़े तीन फीट तक वृक्ष खोखला हो चुका था. जिसको देखते हुए भारतीय वन अनुसंधान संस्थान देहरादून के पैथोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. एएन शुक्ला के नेतृत्व में इस महावृक्ष का चार दिन तक उपचार किया गया था. लेकिन आठ जनवरी 2007 को आई जोरदार आंधी की वजह से पेड़ गिर गया था. इस महावृक्ष की समाधि पर काफी लोग उत्सुकता से पहुंच रहे हैं. और इसके बारे में अन्य जानकारियां जानने की भी कोशिश कर रहे हैं. साल में एक बार समाधि में रखे महावृक्ष के अवशेषों को सुरक्षित रखने के लिए मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव किया जाता है.
जौनसार-बावर के पास बंगाण क्षेत्र के टौंस नदी वन प्रभाग के देवता रेंज-ठडियार की सीमा हनोल से लगी हुई है. हनोल से लगभग पांच किलोमीटर दूर देवता रेंज के खूनीगाड़ के पास भासला बीट में एशिया महाद्वीप के सबसे ऊंचे चीड़ के महावृक्ष की समाधि बनाई गई है. वन विभाग की ओर से इस बहुमूल्य धरोहर के संरक्षण के लिए संग्रहालय बनाया गया है. यहां पर चीड़ के महावृक्ष के अवशेष को रखा गया है. हर साल एक से सात जुलाई तक वन विभाग की ओर से प्रदेशभर में आयोजित वन महोत्सव के अंतर्गत इस क्षेत्र में पौधरोपण किया जाता है. वन विभाग की ओर से महावृक्ष की समाधि के पास लगाए गए बोर्ड में लिखा है कि वृक्ष का दो से पांच जनवरी 2007 तक उपचार किया गया था.
जड़ से ऊपर लगभग साढ़े तीन फीट तक वृक्ष खोखला हो चुका था. जिसको देखते हुए भारतीय वन अनुसंधान संस्थान देहरादून के पैथोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. एएन शुक्ला के नेतृत्व में इस महावृक्ष का चार दिन तक उपचार किया गया था. लेकिन आठ जनवरी 2007 को आई जोरदार आंधी की वजह से पेड़ गिर गया था. इस महावृक्ष की समाधि पर काफी लोग उत्सुकता से पहुंच रहे हैं. और इसके बारे में अन्य जानकारियां जानने की भी कोशिश कर रहे हैं. साल में एक बार समाधि में रखे महावृक्ष के अवशेषों को सुरक्षित रखने के लिए मोनोक्रोटोफॉस का छिड़काव किया जाता है.
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