उत्तराखंड के दो ऐसे कारीगर जिन्होंने एक ही हाथ से बनाए मंदिर. जानिए इन मंदिरों के बारे में...

उत्तराखंड के दो ऐसे कारीगर जिन्होंने एक ही हाथ से बनाए मंदिर. जानिए इन मंदिरों के बारे में...


जैसा कि आप लोगों ने इतिहास में पढ़ा होगा कि शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया था और उस तरह की कोई भी इमारत दुबारा ना बन सके इसलिए शाहजहां ने ताजमहल बनाने वाले कारीगरों के हाथ कटवा दिए थे.
कुछ इसी तरह की घटना उत्तराखंड में भी हुई है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं आज हम आपको एक नहीं बल्कि दो ऐसे किस्से बताएंगे जिसमें कारीगरों के हाथ कटने के बाद भी उन्होंने कुछ ऐसा कर दिखाया कि उनका नाम इतिहास में दर्ज हो गया.
पहला किस्सा उत्तराखंड के चंपावत जिले का है. उत्तराखंड के चंपावत जिले में भगवान शिव को समर्पित एक बालेश्वर मंदिर है. यह बात उस समय की है जब कुमाऊं में चंद राजाओं का शासन हुआ करता था. सन् 1272 में चंद राजाओं ने एक मिस्त्री के द्वारा बालेश्वर मंदिर का निर्माण कराया था, जिसका नाम था जगन्नाथ मिस्त्री. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. जगन्नाथ मिस्त्री ने अपनी कारीगरी से इस मंदिर में मानव मुद्राएं, देवी-देवताओं, अनेक तीर्थ स्थानों व आधा दर्जन से अधिक शिवलिंग स्थापित किए गए थे. सभी लोग इस मंदिर की बहुत तारीफ किया करते थे. दूर-दूर तक इसकी खूबसूरती के बारे में चर्चाएं होने लगी थी. वहीं दूसरी तरफ चंद राजाओं को यह भी डर था कि जगन्नाथ मिस्त्री कहीं और इस तरह की कला का प्रदर्शन ना करे दे. जिस वजह से चंद्र वंश के शासकों ने इस मिस्त्री का एक हाथ कटवा दिया. इस घटना के बाद जगन्नाथ मिस्त्री ने अपनी बेटी कस्तूरी के साथ मिलकर बालेश्वर मंदिर से महज 5 किलोमीटर दूर स्थित एक चट्टान को तराश कर एक नौले का निर्माण किया.
Ek hathiya noula

जिसे लोग एक हथिया नौला के नाम से जानने लगे. एक हाथ से बनाए जाने के कारण इस नाले का नाम एक हथिया नौला पड़ गया. यह नौला इतना खूबसूरत डिजाइन किया गया था कि यह बहुत ज्यादा प्रसिद्ध होने लगा. इस नौले पर लगे पत्थरों पर कारीगर ने गायक, नृतक, वादक और कामकाजी महिलाओं का बहुत खूबसूरत चित्रण किया. इस नौले की यह एक और खास बात है की इसका पानी कभी सूखता नहीं है. यहां आने वाले पर्यटकों के लिए यह नौला आकर्षण का केंद्र बना रहता है. इस नौले को देखने के बाद हर कोई आश्चर्य में पड़ जाता है कि मिस्त्री ने कैसे रात के समय में एक हाथ से अपनी बेटी के मदद से इतनी बड़ी चट्टान को काटकर इसका निर्माण किया होगा. इस नौले की कुछ तस्वीरें हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं.
Ek hathiya noula

इतिहासकारों का भी मानना है कि जो बालेश्वर मंदिर का निर्माण कर सकता है वह कोई आम कारीगर नहीं हो सकता. यह एक सच्ची घटना है अगर आपका कभी चंपावत जाना होगा तो इस मंदिर को जरूर देखिएगा.

अब बात करते हैं इसी तरह के एक दूसरी घटना की जो उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की है. कत्यूरी साम्राज्य में एक कारीगर का बहुत सम्मान था जिसकी कला के बारे में दूर-दूर तक चर्चाएं हुआ करती थी. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, एक दिन उस कारीगर का एक दुर्घटना में एक हाथ कट गया. जिसके बाद लोगों ने उसका मजाक बनाना शुरु कर दिया कि अब उसे पहले जैसा सम्मान नहीं मिलेगा और अब वह किसी काम का नहीं है. इस सबसे परेशान होकर कारीगर ने जंगल की ओर प्रस्थान किया और वहां एक ही रात में एक हाथ से एक बड़ी सी चट्टान को तराश कर देवाल का निर्माण कर दिया.
Ek hathiya dewal

इस देवाल के अंदर उस कारीगर ने शिवलिंग को उल्टी दिशा में बना दिया जिससे कि कोई भी वहां पूजा ना कर सके. इसी वजह से इसे शापित देवाल भी कहा जाता है. कुछ लोगों का मानना है कि कारीगर ने अपने अपमान का बदला लेते हुए शिवलिंग को उलटी दिशा में बनाया. तो वहीं कुछ लोगों का कहना है कि रात के समय देवाल का निर्माण करते समय कारीगर ने जल्दबाजी में शिवलिंग को गलत दिशा में बना दिया.
Ek hathiya dewal

तस्वीरों को देखकर आप अंदाजा लगाइए कि कैसे एक कारीगर ने एक ही रात में और सिर्फ एक हाथ से इस देवाल का निर्माण किया होगा.
Ek hathiya dewal

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