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पहाड़ी विल्सन की कहानी: हरसिल का अंग्रेज़ राजा और हिमालय की रहस्यमयी आत्मा

पहाड़ी विल्सन: हिमालय का अंग्रेज़ राजा

उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र की घाटियों और जंगलों में “पहाड़ी विल्सन” या “राजा विल्सन” के नाम की कहानी आज भी उतनी ही रोमांचक है जितनी 19वीं सदी में थी। उनका असली नाम फ्रेडरिक ई. विल्सन (Frederick E. Wilson) था।


The Legend of Frederick Pahari Wilson: British Raja of Harsil Garhwal


सेना से भागकर गढ़वाल की ओर

फ्रेडरिक विल्सन का जन्म इंग्लैंड के व्हेकफील्ड (Wakefield, Yorkshire) में 1817 में हुआ था। उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की फौज में 1836 में नौकरी शुरू की। लेकिन प्रथम अफगान युद्ध (1838-39) के दौरान वे किसी घटना के बाद सेना से भाग निकले। कुछ किस्सों के अनुसार, उन्होंने मंसूरी में किसी सैनिक को द्वंद्वयुद्ध में मार दिया था और पकड़े जाने के डर से भागे थे। इसी दौरान वे गढ़वाल के हरसिल घाटी, भागीरथी नदी के किनारे पहुँचे।


हरसिल की नई शुरुआत और ‘राजा’ बनना

गांववालों के लिए वे ‘गोराबाबू’ बन गए, जिनकी पहचान विदेशी थी। उन्होंने स्थानीय राजा (टिहरी नरेश) से लकड़ी काटने का विशेष अधिकार ले लिया और विशाल देवदार के जंगलों से लकड़ी काटकर रेलवे के लिए स्लिपर और गंगा नहर बनाने के लिए बड़ी मात्रा में लकड़ी सप्लाई की। इस व्यापार से वे अत्यंत धनी हो गए और इलाके में ‘राजा’ की तरह रहने लगे। उन्होंने अपने ही नाम की सिक्कों की भी शुरूआत की, जो स्थानीय लेन-देन में चलते थे।


प्रेम और परिवार

पहाड़ी विल्सन ने मुखबा गांव की एक सुंदर लड़की गुलाबी से विवाह किया और उनके तीन बेटे हुए। उन्होंने हरसिल में एक सुंदर कोठी बनाई, जिसे “विल्सन कॉटेज” कहा जाता था और जिसका ढांचा आज भी कुछ हद तक शेष है।


सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव

विल्सन की वजह से हरसिल क्षेत्र में राजमा और सेब की खेती शुरू हुई। ‘विल्सन एप्पल’ आज भी हरसिल की पहचान है। हालांकि, पर्यावरण विदों का मानना है कि भारी पैमाने पर जंगलों की कटाई के कारण क्षेत्र के पारिस्थितिक तंत्र को काफी नुकसान पहुंचा, यहाँ तक कि उन्हें ‘उत्तराखंड का सबसे बड़ा पर्यावरण अपराधी’ भी कहा गया।


विरासत और किवदंतियाँ

स्थानीय जनश्रुतियों के अनुसार, विल्सन को उनके द्वारा किए गए पेड़ों की कटाई और पशु-शिकार के लिए क्षेत्रीय देवता सोमेश्वर द्वारा श्राप मिला और उनकी पीढ़ी जल्दी समाप्त हो गई। उनकी मृत्यु के बाद दो बेटे कम उम्र में ही चल बसे और आखिरी वंशज भी स्वतंत्रता संग्राम के बाद वायुसेना में दुर्घटना के शिकार हो गए।


कहा जाता है कि पूर्णिमा की रातों में आज भी विल्सन की आत्मा घोड़े पर सवार होकर हरसिल के जंगलों में दिखाई देती है, जो स्थानीय जन-मानस के लिए असाधारण रहस्य व रोमांच का विषय है।


साहित्य और लोकप्रियता

ब्रिटिश पत्रकार रॉबर्ट हचिसन द्वारा लिखित पुस्तक “The Raja of Harsil” के कारण उनकी कहानी दोबारा चर्चित हुई। आज भी गढ़वाल और खासकर हरसिल क्षेत्र में ‘पहाड़ी विल्सन’ की दास्तां, हिम्मत, व्यापारिक सूझबूझ और रहस्यवाद के लिए कई बार सुनाई जाती है।

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