राजकीय सेवाओं में उत्तराखंड के खिलाड़ियों को नहीं मिलेगा कोटा. सरकार चाहे तो कर सकती है...

उत्तराखंड में सरकारी विभागों में नेशनल-इंटरनेशनल प्रतियोगिता में प्रतिभाग कर चुके खिलाडिय़ों को अब चार फीसद कोटा नहीं मिलेगा. आरक्षण से संबंधित याचिकाओं को हाई कोर्ट ने निरस्त कर दिया है. हाईकोर्ट ने साथ ही यह भी कहा है कि सरकार चाहे तो मापदंडों का अनुपालन करते हुए खेल कोटा दे सकती है. कोर्ट के फैसले से नेशनल-इंटरनेशनल प्रतियोगिता में प्रतिभाग करने के बाद सरकारी सेवाओं में खेल कोटे से नौकरी की उम्मीद लगा रहे खिलाडिय़ों की उम्मीद टूट गई है. पिथौरागढ़ निवासी महेश सिंह नेगी एवं अन्य लोगों ने याचिका दायर करते हुए उत्तराखंड तकनीकी शिक्षा परिषद के 20 दिसंबर 2011 को जारी ग्रुप सी के पदों के लिए विज्ञप्ति के तहत कंप्यूटर ऑपरेटर पद पर नियुक्ति दिलाने की मांग रखी थी. याचिकाकर्ताओं द्वारा सामान्य श्रेणी में खेल कोटे से आवेदन किया गया था.
28 दिसंबर 2012 को उन्होंने लिखित परीक्षा दी. 30 जुलाई 2013 को अंतिम परिणाम घोषित हुआ, जिसमें याचिकाकर्ता का नाम मेरिट लिस्ट में 40वें नंबर पर था लेकिन उसकी नियुक्ति नहीं हुई. 14 अगस्त 2013 को आरटीआइ से पता चला कि हाई कोर्ट ने खेल कोटे में दिए जाने वाले क्षैतिज आरक्षण को निरस्त कर दिया है. इसी आधार पर उन याचिकाकर्ता का चयन भी निरस्त कर दिया गया. खेल कोटे में आरक्षण को लेकर अलग-अलग आदेशों के बाद मुख्य न्यायाधीश द्वारा फुल बेंच का गठन किया गया. मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया व न्यायमूर्ति आलोक सिंह की फुल बेंच ने आरक्षण से संबंधित याचिकाओं को पूरी तरह से निरस्त कर दिया. कोर्ट ने आरक्षण को असंवैधानिक ठहराते हुए सरकार को छूट दी है कि सरकार चाहे तो संवैधानिक मापदंडों का अनुपालन करते हुए खेल कोटे के अन्तर्गत आरक्षण दे सकती है.

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