हल्द्वानी: पहाड़ी आलू की बाजार में खूब मांग है. लेकिन गुणवत्ता विहीन बीज एवं आलू में रोग लगे होने के कारण बाजार में मांग के अनुरूप सप्लाई नहीं हुई. वहीं बाजार में पहाड़ी आलू के आने से पहले ही हिमाचल का आलू बाजार में पहुंच गया. जिससे काश्तकारों को उचित दाम नहीं मिल सके. इसी स्थिति में में पहाड़ के आलू उत्पादक काश्तकार खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. आपको बता दें कि नैनीताल जिले के धारी, ओखलकांडा, रामगढ़ ब्लाक में आलू का खूब उत्पादन होता है. पिछले वर्षों तक उत्पादकों को काफी अच्छा मूल्य मिल जाता था लेकिन इस बार ऐसा बिल्कुल नहीं हो सका. काश्तकारों का कहना है कि उनके सामने आलू के बीज का जबरदस्त संकट रहता है.
विभाग बीज की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति कर नहीं पाता और बाजार में बीज की कीमत पांच से छह हजार रुपये क्विंटल होती है. उद्यान विभाग से मिले कुफरी ज्योति बीज से इस बार सिंचित भूमि में एक कट्टा बीज में सात से आठ कट्टे और असिंचित भूमि में चार से पांच कट्टे ही आलू पैदा हो पाया. जिन काश्तकारों के पास शिमला आलू का पुराना बीज पहले से मौजूद था उन्हें भी नुकसान झेलना पड़ा है. शिमला आलू का एक कट्टा बीज लगाने के बाद तीन से चार कट्टे ही आलू पैदा हो पाया है. कुछ काश्तकारों द्वारा बाजार से दो हजार रुपये प्रति क्विंटल की मूल्य पर जालंधर कोल्ड स्टोर का बीज खरीदा गया. लेकिन उनके यहां भी एक कट्टा बीज से पांच से मात्र छह कट्टे ही आलू उत्पादन हो सका. काश्तकारों का मानना है कि गुणवत्ता युक्त बीज न होने की वजह से इस बार दो-तीन बरसात में ही आलू खेतों में सड़ गया. पचास फीसदी आलू की पैदावार फसल में फंगस लगने की वजह से घट गई है.
विभाग बीज की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति कर नहीं पाता और बाजार में बीज की कीमत पांच से छह हजार रुपये क्विंटल होती है. उद्यान विभाग से मिले कुफरी ज्योति बीज से इस बार सिंचित भूमि में एक कट्टा बीज में सात से आठ कट्टे और असिंचित भूमि में चार से पांच कट्टे ही आलू पैदा हो पाया. जिन काश्तकारों के पास शिमला आलू का पुराना बीज पहले से मौजूद था उन्हें भी नुकसान झेलना पड़ा है. शिमला आलू का एक कट्टा बीज लगाने के बाद तीन से चार कट्टे ही आलू पैदा हो पाया है. कुछ काश्तकारों द्वारा बाजार से दो हजार रुपये प्रति क्विंटल की मूल्य पर जालंधर कोल्ड स्टोर का बीज खरीदा गया. लेकिन उनके यहां भी एक कट्टा बीज से पांच से मात्र छह कट्टे ही आलू उत्पादन हो सका. काश्तकारों का मानना है कि गुणवत्ता युक्त बीज न होने की वजह से इस बार दो-तीन बरसात में ही आलू खेतों में सड़ गया. पचास फीसदी आलू की पैदावार फसल में फंगस लगने की वजह से घट गई है.
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